Tuesday 5 October 2021

आज़ादी के वीर

 जो निकले थे सीना ताने

अपनी जान गवाने

आज़ादी के सपनो को बुनकर

कभी न अपनो की सुनकर।


उनकी जान को तुम कैसे

किसी के सर थोपते हो

ऐसी सोच उनकी न थी

तुम ऐसा क्यों सोचते हो।


किसी और को दोषी बनाकर

अपना सीना ठोकते हो

ये बताकर तुम खुद को 

वैसा होने से रोकते हो।


जागो अब भी समय बचा हे

जो इतिहास उन्होंने रचा हे

व्यर्थ न करो ये मानकर

खुद तुम खड़े थे रण में जानकर।


आगे फिर युद्ध हो गया ,

और फिर जहां बेबसी में को गया,

करना तुम भी वही निश्चय,

जिन वीरों का देते हो तुम परिचय।

(उन सभी मित्रों के लिए जो आज़ादी के वीरो को तय शुदा पैमानों पर नापते हे और भेदभाव की भावना रखते हे !)

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