Wednesday 22 July 2020

अजीब से ख्याल - ३

मिठाइयों से भर गई हे, धर्म की कढ़ाई ,
और चाशनी चढ़ेगी, निर्दोष रक्त की!

भूखा प्यासा, मर रहा था ,
दुआओं से, झोली भर रहा था , रोटी के लिए !

फिर जीत गया, वो ट्रैफिक सिग्नल,
लाल हुआ , पर रौशनी से नहीं!
 
राख पर सो रहे हे, ये बाशिंदे ,
चन्दन सी महकती, ज़िन्दगी के लिए!

सूने हो गए, बारिश को तरसते गाँव,
बाढ़ शरमा गई, आते आते!

इलाकों के रंग , परछाई की गंध,
बेच गया , वो रौशनी वाला!

पुरानी कश्ती पर सवार हस्ती,
और मूर्ति के कीर्तिमान कि मस्ती !

काले सफ़ेद हे , सफ़ेद  काले हे
ये गिरेबान मे , कैसे सांप पाले हे!

रहते हे जमीन पर , आसमान की फांकते हे ,
ये ऐसे निक्कमे हे , जो मेरे काम को आंकते हे!
 
--
नीरज सिंह!
Neeraj Singh
neeraj.singh0901@gmail.com
9770909981

28 comments:

  1. Nice work with deep meaning.
    Keep writing and keep sharing

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    1. Bhai dil ka kehna likha he .. pr baat sateek he ..

      Wo majboor to mar kr apne jakhm chupana chahta tha ..
      Kambakht bade channel walo ne mrne k baad use nanga kr diya

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  2. Beautiful lines bhai, bahut hi dil se likha gaya hai , i loved it

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  3. Nice work..keep going..best of luck for future..

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  4. Bahut badhiya bhaiya. Keep it up...

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  5. Nice work neeraj, keep it up many more to come.����

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  6. ये पंक्तियां आपकी गहरी भावनाओं की अभिव्यक्ति हैं। प्रिय मित्र और उम्दा लिखते रहो। याद रखो कलम तलवार से ज़्यादा ताकतवर होती हैं। अतः इस माध्यम से आप बहुत मनुष्यो के मन को छू सकते हो। आपकी अगली प्रति की प्रतीक्षा में।

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  7. Wah bhai wah bahod khub likha hai. 😊

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  8. Great lines very meaningful

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