में उन सफ़ेद फूलों मे रंग भर रहा हूँ
जिनके पौधों की मिटटी कभी माली ने बदली ही नहीं !
शायद प्रकाश भी मैला हो गया होगा
मेरी समझ तक पहुंचना आसान नहीं हे !
रात के कालीन पर कुछ बड़े सितारे भी पसरे हे
ज़रूर कोई इसे धोकर लाया हे आज !
पहाड़ो पर भीड़ बढ़ गई हे सजदा करने के लिए
पाप मुझमे हे या इस भीड़ मे ढूंढ़ना होगा !
सच कह रहा हूँ आईना देखकर
उसका पता नहीं , उसके घर के सामने !
कमाल करते हे लोग मुझसे इश्क़ जता कर
आँगन के सब पेड़ मैंने काट दिए नए मकान की खातिर !
आधा मेरी रूह का टुकड़ा बड़ा खुश हे आज
बचा हुआ कब तक संभाल कर रखोगे !
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नीरज सिंह!
Neeraj Singh
neeraj.singh0901@gmail.com
9770909981
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