खा गया उसे, उसका वक्त ,
उसकी जमात , उसका रक्त!
सूख गया, वो पैमाना,
वो बारिश, वो जमाना!
दिन अजीब , रातें अजीब,
ज़िन्दगी अजीब, रोज़ाना!
लाईकी के लायक कहाँ,
मेरे ख्वाब जहाँ , मे वहां!
फड़फड़ाकर, उड़ गए परिंदे,
दाने का लालच , लालच के दरिंदे!
ज़ुबान को, काटता हे,
वो चुना, चाटता हे!
ज़िंदा, रास ना आया,
सड़ाया , निचोड़ा, पी गया!
पागल अक्स उसका,
रौशनी से डरा हे,
आधा मुझ पर ,
आधा ज़मीन पर पड़ा हे!
--
नीरज सिंह!
Neeraj Singh
neeraj.singh0901@gmail.com
9770909981
उसकी जमात , उसका रक्त!
सूख गया, वो पैमाना,
वो बारिश, वो जमाना!
दिन अजीब , रातें अजीब,
ज़िन्दगी अजीब, रोज़ाना!
लाईकी के लायक कहाँ,
मेरे ख्वाब जहाँ , मे वहां!
फड़फड़ाकर, उड़ गए परिंदे,
दाने का लालच , लालच के दरिंदे!
ज़ुबान को, काटता हे,
वो चुना, चाटता हे!
ज़िंदा, रास ना आया,
सड़ाया , निचोड़ा, पी गया!
पागल अक्स उसका,
रौशनी से डरा हे,
आधा मुझ पर ,
आधा ज़मीन पर पड़ा हे!
--
नीरज सिंह!
Neeraj Singh
neeraj.singh0901@gmail.com
9770909981
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