Tuesday 23 December 2014

धर्म और धर्म का आधार

भाई लोगो ,

एक किताब लिखी गई प्राचीन काल मे, उसको कहा गया की लिखा हे खुद ईश्वर ने या उसके दूत ने!

फिर उस दूत ने या ईश्वर ने उस किताब का मतलब भी समझाया या फिर संत साधुओं ने व्याख्याए की!

यह सिर्फ हिन्दू नहीं बल्कि हर धर्म मे हो रहा था जो की किसी एक या किसी किताबो के समूह से जन्मा हो!

उसके बाद बात आई धर्म के पालन की , जिसके लिए कई व्यक्ति विशेषो और धर्म समूहों ने कोशिशे की! हर व्यक्ति विशेष अपने विचारो के आधार पर इन किताबो को नित् नए प्रकारों से समझाता गया !

मसलन एक उदाहरण हे की जो अल्लाह को न माने वह काफ़िर हे , या फिर जो क्राइस्ट को नहीं मानता वो लूसिफ़ेर का आज्ञा कारी हे , इन कथनो का अगर सीधा अर्थ निकला जाये तो वह यह हे की जो की ईश्वरीय ( सच या प्रेम या मानवीय ) आचार करने मे सक्षम नहीं हे वह कोई गलत इंसान हो सकता हे !

अब बात करते हे पी के मे कहे गए इस कथन की, कि "जो डरता हे वो मंदिर जाता हे" , इस पूरे घटना क्रम मे फिल्म डायरेक्टर और कलाकार एक बात पर जोर देना चाह रहे हे की "डर कर मंदिर मत जाओ, यह वह डर हे जो की महुष्य की रोज़ मर्राह की वस्तुओं से जुड़े हे जैसे भूख , पास या फ़ैल , सही या गलत"!

बात बड़ी आसान हे की हर व्यक्ति धर्म की कोई भी सीख इन ख़ास चीज़ो को ध्यान मे रखकर धारण करे -

१). मानवता परम धर्म हे और धर्म का आधार हे!
२). करुणा , प्रेम, सहयोग , आपसी सामंजस्य और समाज की रक्षा धर्म का आधार हे!
३). चमत्कार मे ईश्वर नहीं हे , बल्कि ईश्वर को शुद्ध और साधारण रूप मे स्वीकार करने से चमत्कार खुद ब खुद हे !

-नीरज

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